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जाकिर हुसैन: संगीत का सितारा हमेशा के लिए डूब गया*

*जाकिर हुसैन: संगीत का सितारा हमेशा के लिए डूब गया*

 

जाकिर हुसैन का जीवन एक अद्वितीय संगीत यात्रा थी, जो भारतीय संगीत की सबसे महान धारा में गूंजती रही। उनका जन्म 9 मार्च 1951 को मुंबई में हुआ था। वे उस्ताद अहमद जनी ठाकुर के पोते और उस्ताद अल्लारखा के पुत्र थे, जो भारतीय शास्त्रीय संगीत के महान तबला वादक थे। संगीत उनके खून में था, और जाकिर हुसैन ने इसे अपनी आत्मा में समाहित किया। जाकिर हुसैन ने अपने संगीत जीवन की शुरुआत बहुत ही कम उम्र में की थी। वे केवल 7 वर्ष के थे जब उन्होंने अपने पिता से तबला बजाना सीखा। उनके पिता ने उन्हें भारतीय शास्त्रीय संगीत की गहराई से परिचित कराया, और साथ ही उस्ताद अल्लारखा के मार्गदर्शन में उन्हें तबला बजाने की कला में निपुणता प्राप्त हुई। उन्होंने भारतीय संगीत के प्राचीनतम रूपों को समझा और सीखा, लेकिन साथ ही साथ उन्होंने पश्चिमी संगीत, जैज़, और अन्य शैलियों से भी प्रेरणा ली।
जाकिर हुसैन का करियर 16 वर्ष की आयु में ही शुरू हो गया था, जब उन्होंने मुंबई में एक संगीत कार्यक्रम में पहली बार प्रदर्शन किया। इसके बाद उन्होंने भारत और विदेशों में कई प्रतिष्ठित मंचों पर अपनी कला का प्रदर्शन किया। उनका संगीत अद्वितीय था—वे पारंपरिक तबला वादन के साथ-साथ नई शैलियों में भी विशेषज्ञ थे, और संगीत की विविधता को अपनाने में माहिर थे। वे भारतीय शास्त्रीय संगीत और वर्ल्ड म्यूजिक के मिलाजुला रूप को पेश करने में सक्षम थे।
जाकिर हुसैन का नाम जब भी संगीत की दुनिया का जिक्र होता, बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है। उन्होंने कई अंतरराष्ट्रीय कलाकारों के साथ भी संगीत साधना की। एरिक क्लैपटन, जॉर्ज हैरिसन, और जॉन मैक्लॉघलिन जैसे पश्चिमी संगीतकारों के साथ उन्होंने कई रिकॉर्डिंग और प्रदर्शन किए। उनका तबला वादन इतना प्रभावशाली था कि उनकी गिनती विश्व के सर्वश्रेष्ठ तबला वादकों में की जाती है।
उनकी संगीत यात्रा को कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों और सम्मान से नवाजा गया। भारत सरकार ने उन्हें 1987 में “पद्मश्री” से सम्मानित किया, फिर 2002 में “पद्मभूषण” और 2014 में “पद्मविभूषण” से नवाजा। इसके अलावा, उन्हें कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी मिले, जैसे कि ग्रैमी अवार्ड, जो उनके संगीत के वैश्विक प्रभाव को प्रमाणित करता है।जाकिर हुसैन का संगीत केवल ध्वनि नहीं था, बल्कि एक अनुभव था। उनका मानना था कि संगीत सिर्फ एक कला नहीं, बल्कि एक अध्यात्मिक साधना है। वे संगीत को जीवन के हर पहलू से जोड़ते थे, और उनका उद्देश्य था कि संगीत के माध्यम से लोगों को शांति और संतुलन मिले। वे इस विचार में विश्वास करते थे कि संगीत एक सार्वभौमिक भाषा है, जो सबको जोड़ने की क्षमता रखती है।
जाकिर हुसैन ने 2024 तक भारतीय और विश्व संगीत में अपनी अमिट छाप छोड़ी। उनका स्वास्थ्य कुछ समय से खराब था, लेकिन उनके संगीत का जो जादू था, वह हमेशा जीवित रहेगा। । उनका निधन भारतीय और वैश्विक संगीत प्रेमियों के लिए एक गहरी क्षति थी, लेकिन उनके योगदान और संगीत के प्रति प्रेम ने उन्हें अमर बना दिया।
जाकिर हुसैन का संगीत सदियों तक लोगों के दिलों में गूंजता रहेगा, और उनकी विरासत आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी। उनके जीवन और कार्य ने यह सिद्ध कर दिया कि कला न केवल मनोरंजन, बल्कि एक समाज को जोड़ने और उसे जागरूक करने का सबसे प्रभावी साधन हो सकती है।

*श्रेय टीवी से सह संपादक प्रदीप कुमार तिवारी की खास रिपोर्ट*

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